The Lost Bahurupiya : एक शॉर्ट फ़िल्म
The Lost Bahurupiya : एक शॉर्ट फ़िल्म किसी भी कला का अस्तित्व उसके प्रतिस्पर्धी अथवा भिन्न शैलियों वाले कलाओं के प्रति सचेत रहकर उन कलाओं को भी साथ लेकर चलने से ही बचा रहेगा। अगर फ़िल्म वर्तमान में कला का सबसे सशक्त माध्यम है तो इस माध्यम की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है कि फ़िल्म अपने इन अनुसांगिक कलाओं को साथ लेकर चले। फ़िल्म की अवधारणा जिन कलाओं के माध्यम से विकसित हुई, आज वे कलाएं विलुप्त हो चुके हैं या विलुप्ति की कगार पर हैं। एक फ़िल्मकार की जिम्मेदारी महज़ समाज में घटित घटना-परिघटनाओं पर केंद्रित होकर फिल्में बनाना ही नहीं है बल्कि इस आपाधापी में समाज के विलुप्त हो रहे मूल्यों और विधाओं को वर्तमान के नकली चमकीले पृष्ठ पर लाकर विवेचना कराना भी है। सुसंस्कृत और अभिजात्य होने के होड़ में सबसे ज्यादा नुकसान लोक कलाओं का हुआ। उन्हीं कलाओं में एक बहुरूपिया कला भी है जो प्रायः विलुप्त हो चुका है। इसी विलुप्त बहुरूपिया कला के प्रति चिंतित श्रीराम डाल्टन और रूपेश सहाय ने एक लघु फ़िल्म का निर्माण किया था – The Lost Bahurupiya । यह फ़िल्म 61 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में कला और संस्कृति पर सर्वश्रेष्